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जब पत्रकार ही पत्रकार की खबर नहीं लिखते, तो राजीव की मौत पर सत्ता क्यों बोलेगी?

Rajeev Patrakar, Uttarkashi

Rajeev Patrakar, Uttarkashi

उत्तराखंड के उत्तरकाशी से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। राजीव नामक स्वतंत्र पत्रकार, जो वर्षों से मेहनत करके अपना यूट्यूब चैनल चला रहे थे, 10 दिन लापता रहने के बाद मृत पाए गए। नदी ने उनकी लाश को उगल दिया।

राजीव ने हाल ही में उत्तरकाशी के सरकारी अस्पताल में हो रहे भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। लेकिन यह खुलासा ही उनकी ज़िंदगी का आख़िरी पड़ाव साबित हुआ। एक स्वतंत्र पत्रकार, जो न किसी बड़े मीडिया हाउस का हिस्सा था और न ही राजनीतिक चमक-दमक से जुड़ा हुआ था, उसकी मौत पर न सत्ता में बैठे लोगों ने ट्वीट किए, न ही मीडिया जगत में कोई हलचल मची।

अगर यही मौत किसी बड़े चैनल के “सितारे” पत्रकार की होती, तो नेता-मंत्री से लेकर बड़े-बड़े संपादक संवेदनाओं की झड़ी लगा देते। मगर यहाँ, जब पत्रकार ही पत्रकार की बात नहीं कर रहे, तो बाकी समाज से उम्मीद भी कैसी की जाए?

यह घटना केवल एक व्यक्ति की मौत नहीं है, बल्कि पत्रकारिता की उस सच्चाई पर भी सवाल है, जहाँ आज मुद्दा केवल हिंदू-मुस्लिम या TRP वाली बहस बन गया है। भ्रष्टाचार पर बोलना अब जानलेवा हो गया है, और उसका असर समाज को झकझोरने की बजाय चुप्पी में बदल गया है।

मुख्यमंत्री पुष्कर धामी जी से सवाल है क्या राजीव को न्याय मिलेगा? या यह मामला भी चुपचाप फाइलों में दबा दिया जाएगा? राजीव की मौत हमें याद दिलाती है कि जब “जलते घर को देखने वाले” ही खामोश रहेंगे, तो सच बोलने वालों का हश्र यही होगा। पत्रकारिता के लिए यह शर्म का दिन है।

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