रिपोर्ट – अर्जुन देशवाल
बहसूमा। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के गन्ना किसानों के लिए बड़ा फैसला लेते हुए गन्ने का समर्थन मूल्य (SAP) ₹30 प्रति क्विंटल बढ़ाने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस निर्णय को मंजूरी दी गई, जिसके बाद प्रदेश के लाखों गन्ना किसानों के चेहरों पर मुस्कान और उम्मीद दोनों देखने को मिली हैं। सरकार के इस कदम को जहां सत्ताधारी दल और उसके समर्थक किसान हित में ऐतिहासिक बता रहे हैं, वहीं विपक्षी दलों और किसान संगठनों ने इसे ‘अपर्याप्त’ बताते हुए नाराजगी जताई है।
प्रदेश सरकार के इस निर्णय के अनुसार, अब गन्ने का मूल्य बढ़कर ₹370 से ₹400 प्रति क्विंटल तक हो गया है। इस बढ़ोतरी से राज्य के लगभग 35 लाख गन्ना किसानों को करीब ₹3000 करोड़ का अतिरिक्त लाभ मिलेगा। सरकार का दावा है कि इससे गन्ना उद्योग को मजबूती मिलेगी और किसानों को अन्य फसलों से मिल रही प्रतिस्पर्धा का सामना करने में मदद मिलेगी।
भाजपा नेताओं ने बताया किसान हित में ऐतिहासिक फैसला
भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के जिलाध्यक्ष विपेंद्र सुधा वाल्मीकि ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार हमेशा किसान हित में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि ₹30 की बढ़ोतरी से किसानों की आय में सीधा सुधार होगा और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि मुफ्त बिजली, रबी बीजों पर 50% अनुदान, और यूरिया के कम दाम जैसे कदमों ने पहले से ही किसानों की लागत घटाई है।
वहीं भाजपा के मंडल मवाना पूर्वी के अध्यक्ष राजीव चौधरी ने कहा कि यह सरकार किसानों के लिए समर्पित है। उन्होंने बताया कि योगी सरकार के कार्यकाल में नई चीनी मिलों की स्थापना की गई है और छह बंद मिलों को पुनः चालू किया गया है। इससे न केवल किसानों की आय बढ़ेगी बल्कि रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
विपक्ष और किसान संगठनों ने बताया अपर्याप्त
समाजवादी पार्टी के प्रदेश सचिव सुदेश पाल सिंह ने सरकार के इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि ₹30 की बढ़ोतरी किसानों के साथ मजाक जैसी है। उन्होंने कहा कि डीजल, खाद, मजदूरी और कीटनाशकों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है, जिससे किसानों की लागत बढ़ी है। ऐसे में यह बढ़ोतरी महज प्रतीकात्मक है। उन्होंने मांग की कि सरकार को वास्तविक लागत और महंगाई के अनुरूप गन्ने का मूल्य तय करना चाहिए।
भाकियू संघर्ष मोर्चा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सनी चौधरी (सदरपुर) ने कहा कि यह बढ़ोतरी मेहनत और लागत के अनुपात में बहुत कम है। हरियाणा में गन्ने की रिकवरी दर कम होने के बावजूद किसानों को अधिक मूल्य दिया जा रहा है। उन्होंने मांग की कि उत्तर प्रदेश सरकार गन्ने का भाव कम से कम ₹450 प्रति क्विंटल निर्धारित करे ताकि किसान परिवार और खेती दोनों को संभाल सकें।
किसान नेता अरविंद चौधरी ने भी कहा कि यह बढ़ोतरी महंगाई और लागत के अनुपात में पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार को गन्ने का भाव हरियाणा के बराबर लाना चाहिए था। “किसानों की आमदनी और लागत में भारी अंतर बना हुआ है। अगर केंद्र सरकार सच में किसानों के साथ है, तो उसे सभी फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी कानून बनाना चाहिए,” उन्होंने कहा।
रालोद ने बढ़ोतरी को बताया ‘सकारात्मक शुरुआत’
राष्ट्रीय लोक दल के जिला महासचिव आशीष चौधरी उर्फ पिंटू देशवाल ने इस निर्णय को किसान हित में एक अच्छा प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि गन्ना मूल्य बढ़ने से किसानों को खेती के लिए खाद, पानी और बीज खरीदने में राहत मिलेगी, साथ ही परिवार की जरूरतें भी पूरी हो सकेंगी। उन्होंने कहा कि जयंत चौधरी लगातार किसानों की आवाज उठाते रहे हैं, और यह निर्णय उसी दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
वहीं सचिन चौधरी (प्रबंधक) ने कहा कि किसानों की उम्मीद ₹450 प्रति क्विंटल की थी, ताकि वे बढ़ती महंगाई की भरपाई कर सकें। उन्होंने कहा कि यह एक सकारात्मक शुरुआत जरूर है, लेकिन भविष्य में और बढ़ोतरी की आवश्यकता है।
कृषि क्षेत्र पर पड़ेगा असर
प्रदेश में इस समय करीब 122 शुगर मिलें संचालित हैं। गन्ने की कीमत बढ़ने से किसानों की आमदनी में थोड़ी राहत जरूर मिलेगी, लेकिन मिल मालिकों पर भुगतान का दबाव भी बढ़ेगा। जानकारों का कहना है कि अगर चीनी के बाजार मूल्य में सुधार नहीं हुआ, तो मिलों की वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है। हालांकि सरकार का कहना है कि वह चीनी उद्योग और किसानों दोनों के हित में संतुलन बनाकर रखेगी।
गन्ना मूल्य में ₹30 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी से किसानों में खुशी और राहत की लहर जरूर आई है, लेकिन कई किसान और संगठन इसे पर्याप्त नहीं मान रहे। किसानों की प्रमुख मांग ₹450 प्रति क्विंटल की अब भी बनी हुई है। सरकार के इस निर्णय को जहां एक ओर “किसान हित में कदम” कहा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इसे “राजनीतिक घोषणा” भी बताया जा रहा है। फिलहाल, यह बढ़ोतरी किसानों को कुछ राहत देती जरूर दिख रही है, लेकिन असली चुनौती है — किसानों की लागत के अनुरूप उन्हें “वास्तविक लाभ” दिलाना।







