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तस्वीर से संवाद: पूज्य पिताजी की तस्वीर के सामने, शीश नवावा

amrishagarwal

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आज रखा पहला कदम ऑफीस में, पूजनीय पिता जी की तस्वीर के सामने,
शीश नवावा, हुआ महसूस ऐसा, जैसे सर पर मेरे, स्नेह से भरा हाथ फैराया
.
दूर कँही से पिता का स्वर कानो मे आया, बेटा अमरीश
तूने ये फूलो का हार मुझे क्यूँ पहनाया, देख पिता की आँखो में, मैं बुदबुदाया
छोड़कर अपनी यादे आप यँहा, चले गये आप ऐसे जँहा,
जँहा से कोई लौट कर नही आता
फिर स्वर्ग वासी कहलाता,
देने को अपनी श्रधांजली,
मेने ही ये हार चढ़ाया। ……
अचानक लगा ऐसा
जैसे पिता जी मुस्कुराये,
.
हाँ सच है मैं अब बैकुंठ में लगा हूँ रहने,
नहीं आ पाता हूँ घर अब,
सबसे कुछ कहने,
पर तुम सबने जो घर को स्वर्ग बनाया,
बैकुण्ठ से मैने भी संदेश पाया
अब कभी भी आशियाना आ जाता हूँ,
दे तुम सबको आशीर्वाद,
बैकुंठ लौट जाता हूँ,
बस फर्क इतना है
अब तुम सब मुझे देख नही पाओगे,
पर करो महसूस मुझे,
तो घर के जरें.. जरें में मुझे ही पाओगे ।
आ गया समझ में मेरी
मेरे पिता क्या है चाहते,
तस्वीर पर माला का संदेश.
नहीं रहे पिता हमारे……..
वो देना नही चाहते मान बात पिता की, मेने हाथ बढ़ाया, पिता जी के फोटो से,
फूलों का हार हटाया ।
देखपिता की आँखो में …….
एक अजीब सा सुकूँ पाया ।
मेरे पूजनीय पिता जी
स्वर्गीय सुरेश चंद अग्रवाल को समर्पित मेरी किताब ( धरोहर ) से
,

अमरीश अग्रवाल ( शिक्षाविद, मोटिवेशनल स्पीकर)
अमरीश अग्रवाल ( शिक्षाविद, मोटिवेशनल स्पीकर)

Web Title: Dialogue with the picture: In front of the picture of revered father, bow your head

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