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सिवाल खास की सियासत 2027: दावेदारों का शोर, रणनीति और शतरंज की चालें तैयार

सिवाल खास की सियासत 2027

सिवाल खास की सियासत 2027

सिवाल खास की सियासत 2027 में दावेदारों का शोर और रणनीति शुरू हो गई है। चुनावी रण में शतरंज की चालें और राजनीतिक हलचल पूरे जिले में महसूस की जा रही हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट और जानें कौन-कौन दावेदार मैदान में हैं।

मेरठ। सिवाल खास विधानसभा, हमेशा से उत्तर प्रदेश की सियासत का अचूक अखाड़ा रही है, अब फिर हलचल और हंगामे से गूंज रही है। 2027 का चुनाव अभी दूर है, लेकिन उम्मीदवार अपने-अपने पत्ते खोल चुके हैं। जोड़-तोड़, दांव-पेंच, और जनता के बीच पैठ बनाने की जद्दोजहद तेज़ हो चुकी है।

रालोद के गुलाम मोहम्मद, दो बार की जीत का अनुभव लेकर मैदान में डटे हैं। हिंदू-मुसलमान दोनों समुदायों में उनकी पकड़ मजबूत है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि 2027 में वह बड़े चेहरों को टक्कर देंगे। उनका मानना है कि जनता के बीच किए काम और क्षेत्रीय पकड़ उन्हें हर मुकाबले में आगे रखेगी।

रालोद से रणबीर दहिया भी सक्रिय हैं। 76 गांवों का दौरा, 5000 नए सदस्य, और हर मंच से यह संदेश कि सिवाल खास में रालोद को मजबूत करना उनका मिशन है। यह केवल चुनाव तक सीमित नहीं, बल्कि पार्टी की जड़ मज़बूत करने का अभियान है।

समाजवादी पार्टी भी चुप नहीं है। बसपा से चुनाव लड़ चुके नदीम चौहान, जिन्होंने 40 हज़ार से अधिक वोट हासिल किए, अब सपा का संदेश लेकर गांव-गांव घूम रहे हैं। मुस्लिम समाज के साथ-साथ सैनी, जाट, गुर्जर, बनिया, पंजाबी और दलित वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।

पूर्व रालोद राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष वसीम राजा भी सपा में शामिल हैं। टिकट अंतिम चरण में मिलेगा, लेकिन उससे पहले पार्टी को हर गली, मोहल्ले और बूथ तक मज़बूत करना प्राथमिकता है। अखिलेश यादव का संदेश लेकर वह सिवाल खास की राजनीति में सक्रिय हैं।

भाजपा और मनिंदर पाल

भाजपा की तरफ से मनिंदर पाल पिछले कुछ साल से लगातार सिवाल खास की राजनीति में सक्रिय हैं। वे सिर्फ़ वोट बैंक के भरोसे नहीं, बल्कि जमीन पर किए काम और जनता के बीच पैठ के दम पर अपनी पहचान बना रहे हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि मनिंदर पाल का असर क्षेत्रीय राजनीति में लगातार बढ़ रहा है।

मनिंदर पाल लगातार लोगों से जुड़े हैं, समाजसेवी पहल कर रहे हैं और स्थानीय मुद्दों को उठाकर जनमानस तक पहुँच रहे हैं। उनका अंदाज़ साफ़ है वोट मांगना नहीं, जनता के बीच अपनी मेहनत और काम दिखाना। यही वजह है कि स्थानीय लोग उन्हें “सियासी ताक़तवर और पॉलिटिकल खिलाड़ी” दोनों मानते हैं।

इसके साथ ही भाजपा का दूसरा ताक़तवर चेहरा, समाजसेवी और भारतीय मतदाता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदेश फौजी, लंबे समय से सक्रिय हैं। मतदाताओं को जागरूक करने और मतदान के प्रति प्रेरित करने में आदेश फौजी की भूमिका काफी असरदार साबित हो रही है।

सबसे चर्चा में है पूर्व विधायक जितेंद्र पाल सिंह सतवाई। जाट समाज से ताल्लुक रखने वाले सतवाई पहले भी भाजपा से जीत चुके हैं। उनके अनुभव और संगठन में पकड़ उन्हें भाजपा का ताक़तवर चेहरा बनाती है।


सिवाल खास की राजनीति सिर्फ़ जाति या धर्म के खेल तक सीमित नहीं। यहाँ जमीन पर काम, संगठन की ताक़त और जनता से संपर्क निर्णायक हैं। 2026 तक कई नए चेहरे भी मैदान में उतर सकते हैं। हर प्रत्याशी अपनी स्थिति मज़बूत करने में जुटा है।

यह चुनाव सिर्फ़ मतों का नहीं, बल्कि सियासी शतरंज है। गुलाम मोहम्मद, रणबीर दहिया, नदीम चौहान, वसीम राजा, आदेश फौजी और जितेंद्र पाल सिंह सतवाई—सब अपने दांव खेल रहे हैं। हर चेहरे की रणनीति, जोड़-तोड़ और पैठ इस लड़ाई को और रोचक बना रही है।

सिवाल खास केवल एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति का अखाड़ा है। हलचल साफ़ बताती है कि 2027 का चुनाव चेहरों, विचारधाराओं और सत्ता के समीकरणों की लड़ाई होगा।

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