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सखी-सैयां खूब कमात है, स्कूल-अस्पताल झक्कास है… लेकिन गुरबत अभी भी बिहार में VIP की तरह घूमता है! – Modi Ka Jalwa

सखी-सैयां खूब कमात है, स्कूल-अस्पताल झक्कास है…

सखी-सैयां खूब कमात है, स्कूल-अस्पताल झक्कास है…

बिहार | जहां-जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कदम रखते हैं, वहां का नज़ारा कुछ और ही कहानी कहता है। मंच से लेकर सड़क तक, हर तरफ ऐसा लगता है जैसे बिहार पूरी तरह बदल गया है। बड़े-बड़े पोस्टर, चमकते हुए बैनर, सरकारी अफसरों की चहल-पहल, और जनता की चहलकदमी सब यही कहता है: Modi Ka Jalwa

“सखी-सैयां खूब कमात है, स्कूल-अस्पताल सब झक्कास है।”

यह लाइन जैसे बिहार की नई तस्वीर का प्रतीक बन गई है। प्रधानमंत्री के आने से पहले, प्रशासन हर जगह तैयारी में जुट जाता है सड़कों की सफाई, बिजली की लाइनें, स्कूल और अस्पताल की झलक। लगता है जैसे अब बिहार में सब कुछ बढ़िया है।

लेकिन जब आप ज़मीनी हकीकत में उतरते हैं, खासकर सीमांचल, मधेपुरा, पूर्णिया जैसे पिछड़े जिलों में, तो हक़ीक़त कुछ और ही है। वहां गरीबी का अंबार अब भी कायम है। सड़कों के गड्ढे, आधा-अधूरा बिजली, पानी की समस्या, और सरकारी स्कूलों में बच्चों की तन्हाई यह सब वहीं मौजूद है।

ऐसा लगता है जैसे 90 के दशक का बिहार आज भी लोगों की यादों में ज़्यादा हावी है। उस दौर की दिक्कतें, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और गरीबी की झकझोरती तस्वीर अभी भी लोगों के मन-मस्तिष्क में ताज़ा हैं।

लेकिन बिहार के दो चेहरे हैं। एक वह जो टीवी, अखबार और सोशल मीडिया पर दिखता है सड़कों पर पक्की सड़कें, चमचमाती बिजली की लाइनें, स्कूल-कॉलेज और अस्पताल। और दूसरा वह जो गाँव-गाँव, मोहल्ला-मोहल्ला छुपा है जहां लोग आज भी पानी के लिए तड़पते हैं, अस्पताल की लाठी और सरकारी स्कूल की खिचड़ी उन्हें हकीकत से दूर नहीं ले जाती।

बिहार का बदलता चेहरा

मोदी की मौजूदगी में यह बदलाव स्पष्ट दिखाई देता है। जब प्रधानमंत्री किसी जिले में आते हैं, तो लगता है जैसे सब कुछ बढ़िया है। सड़कें नई, बिजली लाइनें चमकदार, स्कूल-कॉलेज और अस्पताल सब कुछ ठीकठाक।

“सखी-सैयां खूब कमात है, स्कूल-अस्पताल सब झक्कास है।” यह लाइन जनता की जुबान पर इतनी तेजी से फैलती है कि लगता है जैसे बिहार बदल ही गया।

लेकिन यही वही बिहार है जो 2005 के बाद भी अपने पुराने दर्द और सवालों के साथ खड़ा है। लोग सोचते हैं, “अगर आज की हालत ये हैं, तो 90 के दशक में कैसी तस्वीर रही होगी?”

सड़कें बनी हैं, मगर बारिश में पानी भरा रहता है। बिजली है, मगर कई गांवों में आज भी अंधेरा पसरा रहता है। सरकारी स्कूल हैं, लेकिन शिक्षकों की कमी और बच्चों की अनुपस्थिति इस तस्वीर को आधा-अधूरा बना देती है। अस्पताल हैं, मगर दवाइयों और डॉक्टरों की कमी ने लोगों को घर बैठे इलाज की मजबूरी दे रखी है।

गुरबत और उम्मीद का मेल

बिहार की जनता आज भी दो हिस्सों में बंटी है। एक हिस्सा जो बदलते बिहार का हिस्सा बनकर खुश है वो लोग जो नई सड़क, बिजली, सरकारी सुविधाएं और मोदी के अभियान से जुड़कर अपने जीवन में बदलाव महसूस कर रहे हैं। और दूसरा हिस्सा, जो 90 के दशक की गरीबी और समस्याओं में उलझा हुआ है। वो लोग सोचते हैं कि सुधार तो हो रहा है, मगर यह सुधार उनके लिए पर्याप्त नहीं है।

सीमांचल में खासकर गुरबत की जुबान पर सिर्फ एक नाम गूंजता है नरेंद्र मोदी। ऐसा लगता है जैसे यह नाम उनके लिए सिर्फ प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि उम्मीद, बदलाव और कभी-कभी भ्रम का प्रतीक भी बन गया है।

लोकल अनुभव और जनता की जुबान

गांव की चौपालों में, सड़क किनारे, बाजार में, लोगों की जुबान पर यही सवाल है “भाई, अब सड़क बनी है, बिजली आई है, लेकिन रोजगार कहाँ है?” कई लोग कहते हैं कि सरकारी अस्पताल और स्कूल ठीक हैं, लेकिन उसमें जो सुविधा है, वो उनकी उम्मीदों के हिसाब से नहीं है।

एक छोटे से गाँव में महिला कहती है, “अब हम बिजली के लिए परेशान नहीं हैं, मगर दवाई और डॉक्टर के लिए अभी भी चलना पड़ता है।” वहीं कुछ युवा कहते हैं, “सड़क अच्छी है, मोबाइल नेटवर्क है, मगर रोजगार के नाम पर खाली सपना है।”

हिंदुत्व और राजनीति का असर

बिहार में अब राजनीतिक और सामाजिक माहौल भी बदल गया है। हिंदुत्व का बोलबाला समाज में दिखाई देता है। मंदिरों के निर्माण, धार्मिक आयोजनों और सोशल मीडिया पोस्टों के जरिए यह संदेश फैलाया जा रहा है कि समाज में सब ठीक है और मोदी सरकार सब संभाल रही है।

लेकिन जो बड़ी आबादी है, उनके लिए यह अद्भुत और कभी-कभी अकल्पनीय है। सड़कों, बिजली और सरकारी सुविधाओं के बीच उनकी ज़िंदगी अभी भी संघर्षों से भरी है।

बदलाव की उम्मीद

फिर भी, बिहार के लोग उम्मीद में जी रहे हैं। वो जानते हैं कि सुधार हो रहे हैं, लेकिन यह सुधार उनके हिसाब से धीमा है। 2005 के बाद का बिहार धीरे-धीरे विकसित हो रहा है। सड़कें, बिजली, स्कूल, अस्पताल ये सब मौजूद हैं, मगर यह सुधार हर किसी तक पहुँच नहीं पाया है।

इस बीच, नरेंद्र मोदी का नाम हर तरफ गूंजता है। लोग कहते हैं, “भाई, मोदी जी आए तो लगता है कि सब ठीक हो जाएगा। ” यह नाम अब सिर्फ प्रधानमंत्री का नहीं, बल्कि बिहार में बदलाव और उम्मीद का प्रतीक बन गया है।

सौ बात की एक बात..

बिहार में आज भी 90 के दशक की तस्वीर कहीं न कहीं मौजूद है। लेकिन 2005 के बाद का बिहार भी दिखाई देता है वो सड़क, बिजली, स्कूल और अस्पताल के रूप में।

इस पूरे संघर्ष, उम्मीद और राजनीतिक बदलाव के बीच सिर्फ एक नाम है नरेंद्र मोदी। गुरबत की जुबान पर यह नाम गुमान बन गया है। लोग इसके लिए तारीफ करते हैं, आलोचना करते हैं, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते।

और कहीं न कहीं, “सखी-सैयां खूब कमात है, स्कूल-अस्पताल सब झक्कास है।” यह लाइन आज भी बिहार के गलियों में गूँजती है, लोगों की जुबान पर, उम्मीद और आलोचना के बीच।

बिहार की सियासी हकीकत यही है सपनों, वादों और नारों के बीच एक ज़मीनी सच।

Web Title : “Sakhi-Saiyan Khoob Kamaat Hai: Bihar Ki Haqikat Aur Modi Ka Jalwa Jo Har Kone Mein Goonj Raha Hai