उन्नाव रेप केस में कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत मिलने के बाद देशभर में नाराजगी।

‘न्याय’ आज भी गुमशुदा है! उन्नाव केस में कुलदीप सेंगर को जमानत, तो फिर पीड़िता को क्या मिला? सिस्टम का ‘ज्ञान’ और समाज का ‘संयम’!

उन्नाव रेप केस में कुलदीप सिंह सेंगर को जमानत मिलने के बाद देशभर में नाराजगी। पीड़िता, उसकी मां और महिला कार्यकर्ताओं ने इंडिया गेट पर प्रदर्शन किया। न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े।

नई दिल्ली। देश के न्याय तंत्र पर फिर वही पुराना सवाल खड़ा हो गया है—क्या न्याय केवल कागज़ों में है और पीड़ित सिर्फ़ संघर्ष का नाम? 2017 के बहुचर्चित उन्नाव गैंगरेप मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाई कोर्ट से जमानत और सजा पर रोक मिल गई… और इसके बाद देश में गुस्सा भी, सवाल भी और दर्द भी एक बार फिर ज़िंदा हो गया।

कहने को तो अदालत का फैसला “कानूनी प्रक्रिया” का हिस्सा है, लेकिन सवाल ये है कि न्याय कहाँ है?
यदि बलात्कारी को राहत मिलती है, तो पीड़िता के हिस्से में क्या आता है—प्रेस कॉन्फ्रेंस, बयान, आश्वासन और ‘सिस्टम का व्याख्यान’?


इंडिया गेट पर चीख उठा दर्द—और पुलिस ने ‘व्यवस्था’ निभा दी

जमानत के फैसले के विरोध में इंडिया गेट पर उन्नाव पीड़िता, उसकी मां और महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना सहित कई लोग धरने पर बैठे। आवाज वही थी—“न्याय चाहिए”… लेकिन सिस्टम ने वही किया जो वह अक्सर करता है।
दिल्ली पुलिस ने पीड़िता, उसकी मां और प्रदर्शनकारियों को हटा दिया।

यानी व्यवस्थाओं का पहरा मज़बूत है—बस न्याय अब भी गायब है।


13 साल पहले निर्भया, आज फिर वही दिसंबर और फिर वही सवाल

देश ने 2012 में सड़क पर उतरकर कहा था—अब नहीं!
पर 13 साल बाद दिसंबर फिर वही दर्द लेकर खड़ा है।
कानून की किताबें मोटी हो गईं—लेकिन न्याय हर फैसले के साथ और पतला!

आज भी रेप पीड़िता न्याय मांगते-मांगते इस तरह भटकती है मानो वही आरोपी हो।
और ऊपर से तंज—“कानून अपना काम कर रहा है।”
सवाल है—पीड़िता का क्या? उसका जीवन, उसका डर, उसका टूट चुका भरोसा किस किताब में लिखा है?


योगिता भयाना का दर्द—“ये कैसा न्याय है?”

महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने सोशल मीडिया पर लिखा—
यह वही पीड़िता है जिसके पिता की पुलिस कस्टडी में मौत, कार हादसे में बुआ व वकील की मौत, सैकड़ों टांके, टूटती हड्डियां, महीनों वेंटिलेटर पर जिंदगी-मौत की लड़ाई… और आज भी न्याय की गुहार!
अब पीड़िता का बयान—
“आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा…”
क्या ये सुनकर भी व्यवस्था सिर्फ़ “प्रोटोकॉल” गिना पाएगी?


पीड़िता की मां का सवाल—अपराधी दूर रहकर पवित्र हो जाता है क्या?

पीड़िता की मां ने साफ कहा—
चाहे आरोपी घर पर रहे या 500 किलोमीटर दूर—अपराध अपराध है और अपराधी अपराधी!
ऐसे मामलों में बेल नहीं, कड़ी सजा और कड़ा संदेश देश को चाहिए।
लेकिन शायद सिस्टम की किताब में ये लाइन अभी लिखी ही नहीं गई।


सुन लीजिए, सिस्टम…

अगर ये न्याय है—तो न्याय का अर्थ बदल चुका है।
अगर ये कानून है—तो कानून इंसाफ़ से अलग रास्ता चल चुका है।
और अगर यही व्यवस्था है—तो पीड़िता का भरोसा टूटना अपराध नहीं, परिणाम है।


देश पूछ रहा है—
“बलात्कारी को राहत…
तो पीड़िता को क्या मिला?”

शब्द? बयान? आश्वासन?
या फिर वही पुरानी सीख—“सिस्टम पर भरोसा रखिए!”

और सिस्टम…
वह अब भी अपनी मोटी किताबों में इंसाफ़ ढूंढ रहा है।