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खटते खटते मर जाना है | मुसहर समाज की वो कहानी, जो कभी बदली ही नहीं

यह कहानी नई नहीं है, और शायद अब कभी नई भी नहीं होगी। मुसहर समाज के जीवन में वक्त जैसे ठहर गया है। बदलते भारत के हर शोर, हर नारे, हर विकास यात्रा से यह समाज हमेशा बाहर रह गया। जहाँ बाकी देश 21वीं सदी में डिजिटल इंडिया की बातें करता है, वहीं मुसहरों की बस्तियाँ अब भी मिट्टी, धुएँ और भूख के बीच सांस ले रही हैं।

“खटते खटते मर जाना है” – यह वाक्य इनके जीवन का सच है, नारा नहीं। सुबह खेतों में मज़दूरी, दोपहर भूख, और शाम थकावट में डूबा हुआ सन्नाटा। न बिजली की उम्मीद, न स्कूल की गूंज, न अस्पताल का भरोसा। यहाँ जीवन का हर दिन जैसे मौत की प्रतीक्षा में बीतता है।

बिहार के भोजपुर ज़िले में बसे मुसहर टोले अब भी उसी दौर में जी रहे हैं जहाँ विकास की कोई पदचाप नहीं पहुँची। बच्चे नंगे पांव धूल में खेलते हैं, लड़कियाँ किशोरावस्था से पहले ही मां बन जाती हैं। शराब यहाँ जरूरत बन चुकी है, और अंधविश्वास इनके दर्द का एकमात्र इलाज। कोई योजना, कोई नेता, कोई वादा अब इन तक नहीं पहुँचता।

सरकारें बदलीं, भाषण बदले, वादे बदले – पर मुसहरों की तकदीर नहीं बदली। हर चुनाव के बाद उनकी दुनिया वही रह जाती है, जहाँ पेट भरना ही सबसे बड़ा सपना है। स्कूल के नाम पर खंडहर, अस्पताल के नाम पर झोपड़ी, और रोजगार के नाम पर कर्ज़। यह समाज अब उम्मीद करना भी भूल चुका है।

कभी-कभी कुछ संस्थाएँ आती हैं, तस्वीरें खिंचती हैं, रिपोर्टें बनती हैं, और फिर सब चला जाता है। जो बचता है, वह वही पुराना सन्नाटा। कोई आकर कहता है “अब विकास होगा”, लेकिन विकास यहाँ सिर्फ कागज़ों पर होता है। मुसहरों की ज़िंदगी अब रिपोर्टों और भाषणों की शोभा बनकर रह गई है।

इनकी लड़कियाँ आज भी विधवा होती हैं बिना पति को जाने, और बच्चे आज भी भूख से सो जाते हैं बिना खाना खाए। स्कूल की घंटी यहाँ कभी नहीं बजी, और अस्पताल का दरवाज़ा इनके लिए कभी नहीं खुला। सरकार के हर दावे, हर वादे की हकीकत इनकी झोपड़ियों की दीवारों पर लिखी है — मिट्टी में, धुएँ में, और थकावट में।

सदियों से ये लोग जी रहे हैं, बस जी रहे हैं — बिना उम्मीद, बिना बदलाव। इनकी दुनिया में कोई नया सवेरा नहीं आता, बस शाम गहरी होती जाती है। मुसहर समाज के लिए “भविष्य” एक ऐसा शब्द है, जिसका अर्थ अब खो चुका है।

यह कहानी दर्द की नहीं, बल्कि उस चुप्पी की है जो हर सदी के बाद और गहरी होती जा रही है। मुसहरों के लिए अब कुछ नया नहीं होता — न आज, न कल।
क्योंकि इनकी ज़िंदगी में समय रुक गया है… और शायद अब कभी आगे नहीं बढ़ेगा।