मेरठ। शुक्रवार को सेंट्रल मार्केट विवाद ने एक बार फिर राजनीतिक रंग ले लिया। कथित पीड़ितों ने राज्य सरकार के खिलाफ धरना शुरू किया, जिसमें समर्थन देने पहुंचे सपा विधायक अतुल प्रधान ने स्थानीय प्रशासन और नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए। विधायक के धरने में शामिल होने के बाद शहर की राजनीति गरमा गई।
बाद में आयोजित दिशा (जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति) की बैठक में विधायक अतुल प्रधान ने यह मुद्दा उठाया तो बीजेपी सांसद और पार्टी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी। बैठक में माहौल इतना गर्मा गया कि सांसद ने गुस्से में बैठक समाप्त करने की घोषणा कर दी।
बैठक में मेयर हरिकांत अहलूवालिया भी सपा विधायक के सवालों पर भड़क गए। विधायक ने नगर निगम की निर्माणाधीन दुकानों के कथित आवंटन और बिना स्वीकृत नक्शे के निर्माण पर आपत्ति जताई। बताया गया कि मेयर ने कुछ दुकानों का आवंटन “कथित पीड़ितों” को करने की घोषणा की थी, जबकि नगर निगम अधिनियम के तहत मेयर के पास ऐसा कोई विशेषाधिकार नहीं होता।
सपा विधायक ने यह भी सवाल उठाया कि नगर निगम परिसर में बन रहा कॉम्प्लेक्स बिना एप्रूव्ड नक्शे के क्यों तैयार किया जा रहा है। इस पर मेयर ने कहा कि “सभी कार्य नियमों के तहत किए जा रहे हैं”, लेकिन बैठक में मौजूद सांसद और अधिकारियों के बीच इस मुद्दे पर तीखी नोकझोंक होती रही।
सूत्रों के अनुसार, बैठक के दौरान व्यापारियों को मंडलायुक्त से “लॉलीपॉप” दिलाने के आरोप भी लगे, जिस पर बीजेपी सांसद ने नाराज़गी जताई और कहा कि ऐसे मुद्दे दिशा बैठक के दायरे से बाहर हैं।
उधर, प्रशासनिक स्तर पर भी इस विवाद का असर देखने को मिला। मंडलायुक्त ऋषिकेश यशोद भास्कर, जिन्होंने पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ जाकर ध्वस्तीकरण पर रोक लगाई थी और विवादित फैसले लिए थे, सरकार ने उन्हें तत्काल मेरठ से हटा दिया और अपने पास बुला लिया।
सेंट्रल मार्केट विवाद अब राजनीतिक टकराव का रूप ले चुका है। सपा विधायक इसे “व्यापारियों के अधिकारों की लड़ाई” बता रहे हैं, जबकि बीजेपी नेताओं का कहना है कि “विपक्ष केवल राजनीतिक लाभ के लिए मुद्दा भुना रहा है।”
स्थानीय व्यापारी प्रशासन से यह मांग कर रहे हैं कि नगर निगम और सरकार दोनों मिलकर एक स्पष्ट नीति बनाएं ताकि दुकान आवंटन और निर्माण कार्य पारदर्शी रूप से पूरे हो सकें।
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