माँ भद्रकाली शक्तिपीठ इतिहास: हस्तिनापुर का पौराणिक मंदिर

हस्तिनापुर का गौरवशाली आस्था स्थल: माँ भद्रकाली शक्तिपीठ इतिहास से जुड़ी पौराणिक आस्था और परंपराएं

हस्तिनापुर। महाभारत की ऐतिहासिक भूमि हस्तिनापुर में स्थित माँ भद्रकाली शक्तिपीठ न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि अपने पौराणिक महत्व और माँ भद्रकाली शक्तिपीठ इतिहास के कारण देशभर के श्रद्धालुओं के आकर्षण का प्रमुख केंद्र माना जाता है। पांडव टीले के पास स्थित यह मंदिर महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है, जहाँ माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहाँ माँ भद्रकाली (जयंती माता) की पूजा-अर्चना की थी। इसे पांडवों की कुलदेवी का मंदिर भी माना जाता है।

किंवदंतियों के अनुसार, यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ माता सती के शरीर का अंग गिरा था, जिसके बाद यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुआ। महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने माता के आशीर्वाद के लिए धन्यवाद स्वरूप अपने रथों के घोड़े यहाँ अर्पित किए थे। इसी परंपरा के चलते आज भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर मिट्टी और धातु के घोड़े माता को अर्पित करते हैं।

माँ भद्रकाली शक्तिपीठ का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और बलराम से भी जोड़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि दोनों का मुंडन संस्कार यहीं पर संपन्न हुआ था, जिसके चलते आज भी यह स्थान मुंडन संस्कार के लिए बेहद शुभ माना जाता है। मंदिर परिसर में माँ काली के स्वरूप के साथ पिंडी रूप में भी दर्शन होते हैं। हर वर्ष माघ महीने के सोमवारों को यहाँ विशाल मेला आयोजित होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु उमड़ते हैं।

मंदिर स्थानीय लोगों की आस्था का केंद्र है। श्रद्धालु यहाँ आकर माता से अच्छी फसल, सुख-समृद्धि और परिवार की मंगलकामनाओं की प्रार्थना करते हैं। हस्तिनापुर की पहचान बन चुका यह शक्तिपीठ न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और माँ भद्रकाली शक्तिपीठ इतिहास की जीवंत विरासत भी है।