लखनऊ। लखनऊ–आगरा एक्सप्रेस-वे के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण में बड़ा जमीन घोटाला सामने आया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए राजस्व परिषद के चेयरमैन IAS अनिल कुमार ने इसकी जांच लखनऊ जिलाधिकारी IAS विशाख जी को सौंपी है।
घोटाले में तत्कालीन ADM, SDM, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल की भूमिका संदिग्ध बताई गई है। परिषद अध्यक्ष ने DM को गलत तरीके से जारी मुआवजा वसूलने का निर्देश भी जारी किया है।
क्या है मामला?
यह मामला वर्ष 2013 का है, जब 302 किलोमीटर लंबे लखनऊ–आगरा एक्सप्रेस-वे के लिए जमीन अधिग्रहण किया जा रहा था।
सरोसा–भरोसा गांव की गाटा संख्या 3 की कुल 68 बीघा भूमि में से करीब 2 बीघा पर अनुसूचित जाति के भाईलाल और बनवारीलाल को “2007 से पहले काबिज” दिखाया गया।
इसी आधार पर दोनों के नाम पर ₹1,09,86,415 (1 करोड़ 9 लाख 86 हजार 415 रुपए) का मुआवजा जारी किया गया।
भूमि काबिज दिखाने पर उठे सवाल
जांच में यह पूरा दावा संदिग्ध पाया गया है। राजस्व रिकॉर्ड और मौके की स्थिति के आधार पर यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि संबंधित व्यक्तियों का इतने बड़े हिस्से पर कभी वैध कब्जा था भी या नहीं।
कई अफसरों की भूमिका संदिग्ध
जांच का दायरा बढ़ाते हुए परिषद ने पाया कि—
- उस समय के ADM
- SDM
- तहसीलदार
- नायब तहसीलदार
- राजस्व निरीक्षक
- लेखपाल
सभी की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। रिपोर्ट में कई स्तरों पर लापरवाही व ग़लत प्रमाणन की आशंका जताई गई है।
DM को बड़ा निर्देश—गलत भुगतान वापस लिया जाए
राजस्व परिषद अध्यक्ष ने जिलाधिकारी को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि:
- गलत तरीके से दिया गया मुआवजा तुरंत वसूला जाए
- संबंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए
- पूरे राजस्व रिकॉर्ड की दोबारा जांच की जाए
यह मामला एक बार फिर से यूपी में भूमि अधिग्रहण और मुआवजा प्रबंधन की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रहा है।
