हस्तिनापुर : एक ओर जहाँ केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार “आयुर्वेद को वैश्विक पहचान” देने और “हर नागरिक को स्वस्थ भारत का हिस्सा” बनाने के वादे कर रही है, वहीं दूसरी ओर महाभारत कालीन ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर का राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय उन सभी दावों की जमीनी हकीकत को उजागर कर रहा है।
प्राकृतिक जड़ी-बूटियों और आयुर्वेदिक संपदा से समृद्ध यह धरती आज अपने ही आयुर्वेदिक अस्पताल की टूटी दीवारों और झड़ती छतों के नीचे कराह रही है। अस्पताल की हालत ऐसी है कि मरीजों से ज़्यादा इसकी बिल्डिंग को इलाज की ज़रूरत है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल की दीवारों में दरारें चौड़ी हो चुकी हैं, प्लास्टर झड़ चुका है और बरसात के मौसम में छत से पानी टपकना आम बात है। सरकारी फाइलों में तो यह केंद्र “स्वस्थ्य सेवाओं के विकास” का उदाहरण बताया जाता है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे कोसों दूर है।
जब यह मामला स्थानीय लोगों ने भाजपा के जिला मंत्री व शिक्षाविद् सुनील पोसवाल के सामने रखा, तो वे स्वयं राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय पहुंचे। बिल्डिंग की वास्तविक स्थिति देखकर वे भी हैरान रह गए। उन्होंने मौके पर मौजूद डॉ. खेतन सिंह से चर्चा कर अस्पताल की स्थिति पर चिंता जताई।
सुनील पोसवाल ने कहा कि, “यह बिल्डिंग किसी बड़ी अनहोनी को न्योता दे रही है। जल्द ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और स्वास्थ्य मंत्री को अवगत कराया जाएगा ताकि नई बिल्डिंग का निर्माण शीघ्र कराया जा सके।”
स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब सरकार ‘आयुर्वेद से भारत को विश्वगुरु’ बनाने की बातें करती है, तो उसे पहले हस्तिनापुर जैसे ऐतिहासिक स्थलों पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ करना चाहिए।
कागज़ों में योजनाएं चल रही हैं, भाषणों में विकास गूंज रहा है लेकिन जमीनी स्तर पर राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय हस्तिनापुर खुद इस बात की गवाही दे रहा है कि सरकारी घोषणाएँ कितनी खोखली हो चुकी हैं।
