मुंबई। हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र आज उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहां दौलत, शोहरत और बड़ा परिवार होने के बावजूद ज़िंदगी में एक अजीब-सी खामोशी पसरी हुई है। दो पत्नियाँ, छह बच्चे, तेरह नाती-पोते और तीन दामाद — इतना बड़ा परिवार होने के बाद भी धर्मेंद्र अपने लोनावला वाले फार्महाउस में कुछ नौकरों के साथ अकेले रहते हैं।
कभी बॉलीवुड के “ही-मैन” कहे जाने वाले धर्मेंद्र अब ज़िंदगी के सबसे संवेदनशील दौर — वृद्धावस्था — से गुजर रहे हैं। यह वो समय है जब इंसान के पास सब कुछ होता है, पर फिर भी कुछ कमी महसूस होती है — अपनापन, बातचीत, और वो सुकून जो सिर्फ अपनों की मौजूदगी से आता है।
धर्मेंद्र की यह स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्या अमीर, क्या गरीब — अंत में सबकी कहानी एक जैसी क्यों होती है?
बच्चे बड़े होते हैं, अपने सपनों और करियर की दिशा में बढ़ जाते हैं, उनके अपने परिवार, अपनी प्राथमिकताएँ बन जाती हैं… और पीछे रह जाती है सिर्फ “जड़” — वो आधार जिसने सबको थामा था, पर अब स्थिर रहकर सबको जाते देखती है।
धर्मेंद्र ने हाल ही में अपने मन की गहराई को बयां करते हुए कहा —
“जीवन का सबसे कठिन समय होता है वृद्धावस्था। मैं उस दौर के प्रवेश द्वार पर खड़ा हूं, और भविष्य सोचकर कभी-कभी भयभीत हो जाता हूं।”
उनकी ये बातें न सिर्फ एक सुपरस्टार की वेदना हैं, बल्कि हर उस बुजुर्ग की सच्चाई हैं जो जीवन के अंतिम पड़ाव में अकेलेपन से जूझ रहा है।
लेकिन धर्मेंद्र ने अंत में वही कहा जो उनकी आस्था और सादगी को दर्शाता है —
“होइहैं वही जो राम रचि राखा…”
हम सब यही प्रार्थना करते हैं —
भगवान धर्मेंद्र जी को शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य दें, और उनके जीवन में फिर से मुस्कुराहटें लौटें। 🌹
