गणेशपुर में गरजे भाकियू भानु के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठा. भानू प्रताप सिंह, बोले – “किसानों के हक की लड़ाई अब आर-पार की”
गणेशपुर में गरजे भाकियू भानु के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठा. भानू प्रताप सिंह Photo: संचित अरोड़ा
मेरठ / मवाना : संचित अरोड़ा
गणेशपुर गांव में सोमवार को आयोजित एक विशाल जनसभा में भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ठाकुर भानू प्रताप सिंह ने किसानों के हक में जोरदार हुंकार भरी। इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अमित त्यागी ने अपने काफिले के साथ ठाकुर भानू प्रताप सिंह का गांव में भव्य स्वागत किया। सभा स्थल पर पहुंचते ही किसानों ने फूलमालाओं और नारों के साथ उनका अभिनंदन किया।
सभा को संबोधित करते हुए भानू प्रताप सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा कृषि पर निर्भर है, लेकिन आज भी किसानों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने कहा कि यूपी पूरे भारत में गन्ना उत्पादन में सबसे अग्रणी राज्य होने के बावजूद भी गन्ने का मूल्य अन्य राज्यों की तुलना में कम है। यही कारण है कि किसानों को उनके गन्ने का उचित मूल्य और समय पर भुगतान नहीं मिल पा रहा, जिससे वे आर्थिक और मानसिक रूप से बेहद परेशान हैं।
उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह किया कि प्रदेश की परिस्थितियों और बढ़ती महंगाई को देखते हुए गन्ने का मूल्य ₹450 प्रति क्विंटल किया जाए। साथ ही, जो गन्ना फैक्ट्री किसानों का भुगतान समय पर नहीं करती हैं, उनके खिलाफ ब्याज सहित भुगतान का ठोस कानून लागू किया जाए।
भानू प्रताप सिंह ने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बिजली के निजीकरण का फैसला किसानों और आम जनता के लिए घातक साबित होगा। उन्होंने कहा कि यह कदम किसान विरोधी नीति का उदाहरण है। सरकार ने पहले भी बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने की कोशिश की थी, जिसे किसान यूनियन के विरोध के कारण रोकना पड़ा था।
उन्होंने बताया कि 2009 में कानपुर और आगरा की बिजली व्यवस्था टोरंट पावर कंपनी को सौंपने का एग्रीमेंट किया गया था, लेकिन किसानों और आम जनता के तीव्र विरोध के बाद 2013 में उसे रद्द करना पड़ा। इसके बावजूद 2010 में आगरा की बिजली निजी क्षेत्र को दे दी गई, और आज तक वहां के किसान और नागरिक महंगे बिलों और खराब सेवा से परेशान हैं।
भानू प्रताप सिंह ने कहा कि 2018 में राज्य सरकार ने फिर से 6 जिलों में निजीकरण लागू करने का निर्णय लिया, जिसमें मेरठ, लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर और मुरादाबाद शामिल थे। किसानों के विरोध के कारण उस फैसले को भी वापस लेना पड़ा। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर बिजली व्यवस्था को निजी क्षेत्र के हवाले किया गया, तो भारतीय किसान यूनियन (भानु) इसका संपूर्ण विरोध आंदोलन के रूप में करेगी।
उन्होंने याद दिलाया कि 2020 में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिखित समझौते में स्पष्ट कहा गया था कि ऊर्जा क्षेत्र का निजीकरण नहीं किया जाएगा। अब सरकार उसी वादे से पीछे हट रही है, जो किसानों के साथ विश्वासघात है।
उन्होंने कहा कि सरकार जिस ओडिशा मॉडल का हवाला देकर निजीकरण को सही ठहरा रही है, वह मॉडल पूरी तरह असफल साबित हुआ है। बिजली कंपनियों को घाटे में दिखाकर निजी हाथों में देना जनता और किसानों के साथ धोखा है।
भानू प्रताप सिंह ने कहा कि यह केवल किसान नहीं, बल्कि कर्मचारी वर्ग और आम उपभोक्ता की लड़ाई भी है। अगर यह फैसला लागू हुआ, तो इसका असर हर वर्ग के जीवन पर पड़ेगा। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं।
सभा में भानू प्रताप सिंह ने गन्ना, बिजली, खाद, बीज, नलकूप, मुआवजा और फसल बीमा जैसी करीब बीस किसानों की समस्याओं पर भी चर्चा की और सरकार से तत्काल समाधान की मांग की।
इस दौरान मंच पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अमित त्यागी, जिलाध्यक्ष पुनीत त्यागी, राजेंद्र कुमार सिंह, अजीत कुमार, सतपाल त्यागी, ज्ञानेश्वर त्यागी समेत कई पदाधिकारी और सैकड़ों किसान मौजूद रहे।
सभा के अंत में किसानों ने एक स्वर में कहा कि अगर सरकार ने गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाया और बिजली निजीकरण की नीति वापस नहीं ली, तो भाकियू भानु आंदोलन का बिगुल बजा देगी।
